कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
पिछले रोज अनायास ही मजीद ने एक नए खेल की ईजाद कर ली थी। बस्ती से दूर पीछे
की तरफ, जहां खाली मैदान खत्म होता था, खजूर का एक छोटा-सा जंगल था। इन दिनों
ठेकेदार यहां ताड़ी उतरवा रहा था। ताड़ी उतारने के काम में मजीद का बाप बहुत
कुशल था। सच तो यह है कि ऊंची और मुश्किल जगह चढ़ने का उसे खासा अभ्यास था।
उसने तीन बार बिजली के ट्रांफार्मर उतारे थे और बिजली के तार तो बहुत बार
काटे थे। बिजली का ट्रांसफार्मर उतारने में एक बार उसे सजा भी हो गई थी। इस
हादसे का वह बहुत खुशी से बयान करता था।
बाप जब ताड़ी उतारने जाता था, तो मजीद भी उसके साथ हो लेता था। मजीद के
पीछे-पीछे उसी की उम्र के कुछ और बच्चे भी वहां पहुंच जाते थे। उन्हें ताजा
उतारी, थोड़ी बदबू छोड़ती बेहद मीठी ताड़ी जो मिल जाती थी। इसे पीने के बाद
वे सब दोपहर तक वहीं ठेकेदार के लंबे-चौड़े झोंपड़े के आसपास खेलते रहते थे।
कल भी वे वहीं थे। झोंपड़े के अंदर इकट्ठा की जा रही ताड़ी की दुर्गंध और
बड़ी-बड़ी मक्खियों की आवाजों में अपनी चीखें मिलाते हुए वे एक-दूसरे को खोज
और खदेड़ रहे थे।
जब वे इस बेतमलब खेल से ऊब गए, तो खजूर के उस छोटे-से जंगल के पीछे से होकर
बहनेवाले एक नाले में उतर आए। इस नाले में उन्हें कभी-कभी एकाध छोटी मछली मिल
जाती थी, जिसे वे बहुत मेहनत के साथ पकड़ लेते थे। लेकिन दूसरी मछली चूंकि
कभी हाथ नहीं आती थी, इसलिए पकड़ी हुई छोटी मछली को, जो कब की मर चुकी होती
थी, वे मिट्टी में पटक देते थे।
नाले में उगी लंबी-लंबी घास की फुनगियों पर नन्हे-नन्हे हवाई जहाजों जैसे
मासूम टिडे मंडरा रहे थे। पकड़े जाने पर वे बड़ी तेजी से पर फड़फडाते थे।
मजीद ने एक टिड्डा पकड़ लिया। वह तेजी से पंख फड़फड़ाने लगा। मजीद उसे अपने
चेहरे के करीब ले आया-“अबे पंखा! साला बिजली का पंखा! ऑटोमेटिक।
साला हवा मारता है।"
उसने टिड्डा दूसरे बच्चे के चेहरे के करीब कर दिया-उसने भी हवा महसूस की। अब
सभी बच्चे टिड्डे के पंखे से खेलने लगे।
मजीद ने इसके बाद आसपास के बिच्छू घास की बालियां इकट्ठा कीं। इन बालियों के
रोएं आपस में सटा देने से ये आपस में जुड़ जाती थीं। ऐसी बहुत-सी वालियों को
जोड़कर उसने एक डिब्बा जैसा बना लिया और एक टिड्डा उसके अंदर वंद कर
दिया-"देख बे! इंतजाम पक्का। जब गरमी लगे, पिंजरे में से पंखा निकालो और हवा
ले लो।"
इसके बाद और बच्चों ने भी उसी तरह के पिंजरे बना लिए। कुछ पिंजरों में
उन्होंने टिड्डों के बजाय दूसरे कीड़े भी बंद कर लिए, जैसे रोएंदार रंगीन
इल्ली, तितजी, गुबरैला।
गुबरैला जहूर ने पकड़ा था। इस कीड़े की आदत सभी बच्चों को पता थी। यह बहुत
घिनौनी गन्दगीवाला कीड़ा था। आमतौर पर आदमी की विष्ठा की एक गोली तैयार कर
लेता था और पिछले पैरों से तेजी से लुढ़काता हुआ अपने सूराख तक ले जाता था।
उसे देखते ही मजीद ने जुगुप्सा जाहिर करते हुए चीख मारी-“अबे साले, गंदगी
ढोनेवाला कीड़ा।"
“अबे सुन!" तोंदू ने बुद्धिमानी जताते हुए कहा, "मैं बताऊं, ये साला कीड़ों
का मेहतर है।"
"तब तो और मजेदार बात है।" लल्लू बोला, “ये साला बाकी पिंजरों की टट्टी साफ
करेगा।"
अब वे इस बात का अनुमान लगाने लगे कि कौन कीड़ा क्या काम करेगा। मिर्ची फौरन
चिल्लाया, “मेरी तितली नाचेगी। नौटंकी करेगी, नौटंकी। औरत का प्यारवाली
फरीदा। वाह!"
“अबे तो चल, एक केंचुआ भी पकड़ते हैं। वो बोरिंग करेगा हैंडपाइप। हैंडपाइप
लागएगा।" मजीद ने सुझाव दिया।
उनकी बस्ती के बहुत-से लोगों के समानांतर काम करने वाले कीड़े उन्हें मिल गए।
उन्हें विश्वास हो गया कि उन्होंने इन पिंजरों में लगभग एक समूची बस्ती ही
बंद कर ली है। इस बस्ती को बसाने के लिए अब एक ठीक-सी जगह की जरूरत थी।
झोंपड़ियों के पीछेवाले मैदान में दूर-दूर तक धोबी अपने कपड़े फैला देते थे।
खजूर के पेड़ों के आसपास की कोई भी जगह निरापद नहीं थी, क्योंकि वहां
निकालनेवालों के पैरों से रौंदे जाने का खतरा था।
धोबियोंवाले मैदान और खजूर के जंगल के बीच एक टूटी हुई कब्र थी, एक नन्हे-से
टीले पर। कब्र के पास दो आम के टेढ़े-मेढे दरख्त थे। यह जगह उन्होंने अपनी
बस्ती के लिए चुनी थी। यों भी चूंकि यही जगह खाली रहती थी, इसलिए बस्ती के
बच्चों ने यहां खेलने की आदत बना ली थी।
नायाब गेंद के दोबारा मिल जाने के उत्साह में वे थोड़ी देर के लिए यह बात
बिल्कुल ही भूल गए थे कि कल ही उन्होंने यहां अपनी एक बस्ती बसाई थी। उसी
बस्ती के कुछ पिंजरों पर छोटे के दोनों पैर भरपूर पड़ गए थे। उनमें से एक
पिंजरा तो वही था, जिसमें गायिका नर्तकी फरीदा बंद थी।
बात पता चली, तो परमू हंसने लगा, “साला, फरीदा! अबे, ये भी मजेदार बात है।
नगरपालिकावालों ने हमारी बस्ती तोड़-फोड़ दी और छोटेलाल साले ने मजीद की
बस्ती तोड़-फोड़ दी। साला, ये तुंदियल छोटू हरामजादा...इस हरामी ने बस्ती
उजाड़ दी...देखो तो, भूतनी का साला, नगरपालिका हो गया ऐ!"
छोटे लज्जित मुस्कुराहट के साथ पीछे हट गया। मजीद और दूसरे बच्चे जल्दी-जल्दी
टूटे पिंजरे देखने लगे। पिंजरों में से कई के कीड़े गायब थे और कई मरे हुए
थे। जो नहीं कुचले थे, उनमें भी।
"अबे, इनमें तो पहले ही महामारी फैल गई थी। हैजा हो गया होगा, हैजा।" परमू ने
कहा।
"चल आज फिर पिंजरे बनाते हैं।" मजीद ने कुचले पिंजरों के साथ बाकी पिंजरे भी
फेंकते हुए उत्साह से कहा।
“अबे साला, छोटे फिर वही करेगा।"
इन्हीं संवादों से इस बार फिर एक बिल्कुल ही नए खेल की ईजाद हो गई।
झोंपड़ियोंवाली बस्ती और नगरपालिका के तोड़-फोड़वाले दस्ते का खेल।
खजूर की पत्तियों और घास से छोटी-छोटी झोंपड़ियां बनने लगी और सिगरेट और
माचिस की डिब्बियों से दुकानोंवाले खोखे। यह नन्ही-सी बस्ती खासी कारीगरी से
तैयार हुई थी। कुछ के छप्पर बाकायदा फूस बांधकर बने थे। ऐसी चीजें तैयार करने
का जैसे उन्हें पुश्तैनी अनुभव था। झोंपड़ियों के बीच प्यारे ने छोटी-छोटी
टहनियां तोड़कर उनके ढेर से लकड़ी की एक टाल खोल ली, तो मिराज ने लंबी सींकें
इकट्ठा करके बांसवाले की बांसमंडी तैयार कर ली। धूल-मिट्टी में उन्हें एक
ताले का जंग लगा कुंडा मिल गया था। उससे हैंडपाइप तैयार हो गया।
झोंपड़ियोंवाली यह बस्ती अब तोड़ी जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी।
"बस्तीवालो, तैयार हो जाओ। दो मिनट में बस्ती को मिट्टी में मिला दिया
जाएगा।" परमू ने नाटकीय अंदाज में आवाज लगाई।
"ठहरो-ठहरो!" मिराज ने आवाज लगाई, “अबे, ये तुंदियल आएगा! साले, तू सेठ है।
समझा?"
छोटे ही नहीं, बाकी भी समझ गए। पिछले दिनों उन्होंने कई फिल्में देखी थीं।
कुछ दिन पहले खेमसिंह की लड़की की शादी थी। उसने पीछे के मैदान में तंबू
लगाकर बारात खिलाई थी। उस वक्त वी. सी. आर. पर लगातार छह फिल्में दिखाई गई
थीं। फिल्में बहुत मजेदार थीं। बच्चों ने उनके बहुत-से चरित्रों की बहुत
दिनों तक नकल की थी। वे लोग फौरन समझ गए कि नगरपालिका के बजाय सेठ ज्यादा
रोचक रहेगा। उन्हें संवाद और दृश्य में भूमिका समझाने की जरूरत नहीं थी। छोटे
फौरन आगे आया और नाटकीय अंदाज में बोला, “अबे ओ बस्तीवालो!"
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