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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


अचानक अपना संवाद रोककर वह नाले की तरफ दौड़ गया।

"अबे, इसको क्या हो गया?" परमू ने उसे घूरते हुए पूछा।

“सेठ साले को टट्टी लग गई है।" मिराज ने कहा। सभी हंसने लगे। तब तक छोटे दौड़ता हुआ वापस आ गया। उसने हाथ में एक छड़ी ले रखी थी।

“ये क्या है?"

“छड़ी। छड़ी है। सेठ के हाथ में छड़ी होती है।" छोटे ने गर्व से छड़ी घुमाई, "अरे बस्तीवालो, हरामजादो! दो मिनट में बस्ती खाली कर दो, वरना आग लगा दूंगा। गोलियों से सब भून दिए जाओगे।"

संवाद बोलने के बाद छोटे ने फिल्म के खलनायक की ही तरह मुंह टेढ़ा करके भौंहें ऊपर-नीचे कीं। परमू और मिराज अब उसके गुंडे बन गए थे। मिर्ची, प्यारे और मजीद आगे आए और हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठते हुए बोले, "हम पर दया करो माई-बाप। हमारे घर न उजाड़ो। हम बरबाद हो जाएंगे मालिक, दया करो...।"

छोटे इनकी पीठ पर छड़ी मारता हुआ चीखा, "क्या देखते हो! आगे बढ़ो। तोड़ दो बस्ती और जो सामने से न हटे, उस पर भी ट्रैक्टर चढ़ा दो।"

वे लोग बुलडोजर को भी ट्रैक्टर की समझते थे। परमू अपनी गेंद सुथने के नाड़े में अटकाकर काल्पनिक बुलडोजर चलाने लगा। वह मुंह से आवाज भी निकालता जा रहा था। उसने पैरों से सचमुच ही प्यारे और मजीद को धकेल दिया। प्यारे और मजीद ने पहिए से कुचलकर छटपटाने और मरने का अभिनय भी किया। अब बुलडोजर बस्ती को गिराने जा रहा था। तभी लल्लू उछलकर सामने आ गया। फिल्म के नायक की तरह कमर पर हाथ रखकर दोनों टांगे फैलाए उसने ललकारा, "अरे ओ सेठ के कुत्ते, जिसे अपनी मौत प्यारी हो, वो सामने आ जाए।"

परमू बुलडोजर बनना छोड़कर बोला, “अबे ये क्या? साले, हट।"

“अबे ओ परमुए के बच्चे!" लल्लू चीखा, "उल्टा करके ट्रैक्टर घुसेडूंगा, तो मुंह से बाहर आ जाएगा।"

मरा हुआ मजीद उठकर बैठ गया, “अबे ओए लल्ल. साले क्यों खेल बिगाड रहा है!"

मजीद ने अपनी झोंपड़ी के अंदर एक भारी पत्थर चुपचाप रख दिया था। वह जानता था, जो भी उसमें ठोकर मारेगा, चिल्लाएगा।

"अबे, तू तो पहले ही मर गया साले, चुप कर!" लल्लू ने उसे हड़का दिया,
“और तुम लोग भी सुन लो, जिसने झोंपड़ी की तरफ पांव बढ़ाया, साले की टांग तोड़ दूंगा।" सब जानते थे, लल्लू में ताकत थी। सबसे ज्यादा। वह उनमें से किसी का भी हाथ मरोड़ सकता था, या किसी को भी उठाकर पटक सकता था।

प्यारे भी उठकर बैठ गया। छोटे उसे समझाने लगा, “बात माना कर यार, ठीक-ठाक खेल चल रहा था।"

"अबे, तो ये भी खेल सही।" लल्लू बोला।

मिराज ने कहा, "अभी-अभी तो देख चुके हो। फिल्मों वाली बात अलग होती है। देखा नहीं, नगरपालिकावाले सारे घर गिरा गए। रोका किसी ने?"

"नहीं रोका होगा। मैं तो रोकूँगा। जिसमें हिम्मत हो, आगे आ जाए।" लल्लू ने ललकारा।

छोटे को अभी तक पूरी तरह विश्वास नहीं हुआ था कि खेल बदल चुका है। उसने मिराज को आवाज दी, "कोतवाल साहब, इस गुंडे को गिरफ्तार कर लो।"

मिराज गुंडे से कोतवाल बन तो गया, मगर आगे नहीं बढ़ा। लल्लू ने उसकी तरफ घूसा तानकर कहा, “क्यों बे, तू साले कोतवाल बनेगा?"

मिराज घबराकर पीछे हट गया, “कोतवाल किसी और को बनाओ, मैं तो तुम्हारा गुंडा हूं।"

झोंपड़ियों की तोड़-फोड़ के खेल में अचानक पैदा हुए इस गतिरोध से सभी को खीझ होने लगी। तभी ताड़ीवाले ठेकेदार के बड़े-से झोंपड़े से बाहर आकर लल्लू के बाप ने आवाज दी, “अबे ओ लल्लू!"

"क्या है?"

“अबे जरा देख जाकर, रेढ़ेवाला रुल्दू कहां मर गया! साले को बोल, ठेकेदार साहब बुला रहे हैं।" हुक्म देकर उसका बाप फिर अंदर चला गया।

बाकी बच्चों ने निश्चय ही चैन की सांस ली होगी और लल्लू यह भांप भी गया होगा, क्योंकि वह जाते-जाते बोला, "एक बात बता दूं। मैं अभी आ रहा हूं। इस बीच अगर किसी ने झोंपड़ियों को हाथ भी लगाया, तो समझ लेना।"

उसकी इस धमकी से सभी सकते में आ गए।

जाते-जाते लल्लू ने एक बार उन्हें फिर धमकाया और नाले के पुल की तरफ दौड़ गया।

उसके जाने के बाद बच्चों ने बस्ती की तरफ देखा। नन्हे छप्परों और छोटे-छोटे घरौंदोंवाली वह बस्ती सहसा अच्छी लगी। छोटे-छोटे खोखेवाली दुकानें और झोंपडियों के बीच की गलियां जैसे उनकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगीं।

“अबे रहने दो। इस साली को और सजायेंगे।" परमू ने कहा। बच्चे इस बात से तुरंत सहमत हो गए।

“अबे हां," मिराज बोला, “यहां एक तख्त बनाकर डाल देते हैं बे। उसके आगे दरी बिछेगी। रात में यहां हीराबाई नाचेगी। क्यों बे?"

'दीया लेते आना बे। उसकी गैस-बत्त बना लेंगे। 'औरत का प्यार' खेल होगा बे। औरत का प्यार।"

वे एक बार फिर नए उत्साह से सींकों का तख्त बनाने में जुट गए। चुप रहनेवाला मिर्ची गाने लगा, "नहीं किसी ने दिया है तुमको ये अख्तियार, बिला खता जो इस तरह रैयत डालो मार...कुड़कुड़-कुड़कुड़ धुम...।"

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