कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
उन्होंने धीरे से हामी भरी। तभी उस व्यक्ति ने पूछा, "वहां तुमने अपनी दुकान
बंद कर दी है क्या? मैं दो-एक बार गया तो दुकान बंद ही थी।"
उस व्यक्ति ने एक गुलाब जामुन और मंगाते हए कहा, "कामेश्वर पंडित की बेटी की
शादी में गया था तब इनका गाना सुना था। वाह, क्या गाया था। आए तो थे ये हम
लोगों की हजामत बनाने। तब तो हम सोच भी नहीं सकते थे कि ये इतना उम्दा गाते
हैं। अरे, समां बांध दिया था।"
लोग खाते-खाते उन्हें देखने लगे। उन्होंने किसी की तरफ नहीं देखा, पर वे
जानते थे कि उन्हें लोग देख रहे हैं और उनके पास ऐसी कोई जादुई शक्ति नहीं थी
कि वे लोगों के देखते-देखते गायब हो सकते।
मगर यह सोचना भी शायद सही नहीं था। वे गायब तो हुए थे। देखते-देखते
मंत्रोच्चार करने वाले या गायन-वादन के लिए प्रशंसित नंदलाल उस कोताहगर्दनिया
व्यक्ति की बात खत्म होते-होते सीटी बजाते हुए आसमान तक जाने वाली आतिशबाजी
की डिब्बी की तरह ऊपर गए और खाली होकर नीचे गिरे। अब वहां सिर्फ नंदलाल नाई
बच गया था।
उसके मुंह में खाना बेहद कड़वा और रूखा हो गया था। उस दिन वे एक ऐसी मशीन की
तरह घर लौटे थे जो टूट-फूटकर कबाड़ में तबदील हो चुकी हो।
और इसी के बाद उन्होंने महसूस किया था कि जहां वे पेशाब करते थे वहां चींटे
लगने लगते थे।
बहत कोशिश के बावजूद अब वे दुबारा वह नहीं हो पाए जो होने के बाद वे अब खासे
संतुष्ट रहने लगे थे। एक बार उन्होंने गांव लौटने का भी फैसला कर लिया था।
बौखलाकर बच्चों ने पूछा था, "वहां क्या करेंगे?"
"वही जो पुश्त दर पुश्त करते आए हैं।" उन्होंने बड़ी गंभीरता से कहा, पर
परिवार ही नहीं खुद उनकी इच्छाशक्ति ने भी उनका साथ नहीं दिया था, लेकिन वे
जानते थे कि अब उनके अंदर की कोई चीज उनका साथ देने को तैयार नही थी। कभी
उन्होंने आईने में देखकर बच्चों से कहा था-अभी पचास साल की उम्र तक मेरे बाल
पकेंगे नहीं। पर उन्होंने देखा, बाल सहसा पकने लगे थे। तबले पर उन्होंने कभी
अभ्यास किया ही नहीं था। वे इस उत्साह में खरीद लाए थे कि आर्यसमाज के भजनीक
की संगत वे ढोलक नहीं, तबले से करेंगे। पर मधुमेह के लिए तबले में रात-भर रखा
पानी पीने के लिए उन्होंने दायां बेहिचक खोल डाला था। उन्हें बहुत उत्साह तो
नहीं महसूस होता था अब, लेकिन जामुन के तने की छाल वे ले ही आते थे। आज भी वे
जामुन के दरख्त की वही छाल लेकर लौट रहे थे। इसे चंदन की तरह सिल पर रगड़ने
में भी तो समय लगता था। पर कहां है उनका घर?
अचानक उन्हें कुछ याद आया। अपने पिता से जो पिशाच उसके अस्तित्व में गुणसूत्र
की तरह आया था, वह इतने दिन चुप रहने के बाद उस कोताहगर्दनिया आदमी के कछ
संवादों से ही जैसे बिलबिलाकर उनके अंदर दुबारा उठ पड़ा था। क्या यह उसी
पिशाच की करतूत थी कि वे अपना घर भी भूल गए थे? या सब कुछ छोड़कर अपनी
पैशाचिक शक्ति से उसने सिर्फ उनका घर गायब कर दिया था।
अपनी तमाम सावधानी के बावजूद वह घटना फिर हुई। अब थोड़ा अंधेरा भी होने लगा
था। उन्हें लगा, उनकी गली कुछ ज्यादा ही लंबी और घुमावदार हो गई है। कुछ
पहचान की चीजें उन्होंने खोजने की कोशिश की, पर अंधेरे में साफ कुछ समझ में
नहीं आया। पर वे हार नहीं मानना चाहते थे। कुछ देर और चलने के बाद वे रुक गए।
जहां वे रुके थे वहां गली खत्म होकर एक बहुत चौड़ी और वेहद व्यस्त सड़क में
मिल गई थी। उस सड़क पर काफी तेज उजाला था। झंड़े वाले छोटे चौक से वे ठीक ही
चले थे। उधर से तो कोई भी गली किसी चौड़ी सड़क पर नहीं खुलती थी।
ठीक इसी वक्त शायद बत्ती चली गई। या शायद यह भी उनका वहम हो। उनके अंदर एक
घरघराहट के साथ कोई चीज घूमी जैसे कोई लोहे का पहिया और फिर उसकी गति बढ़ने
लगी। बढ़ती गति के साथ एक तीखी, भेजे में सूराख करने वाली आवाज भी बढ़ने लगी।
उस निपट अंधेरे में तेज घूमते पहिए पर टिके हुए। उन्होंने अपने दोनों हाथ
फैलाए, पर वे कहीं कुछ भी छू नहीं पा रहे थे।
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