गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
चेतावनी
गीताप्रेस भगवान् की है, यहाँ गीता छपती है। आपलोग यह समझे कि इन टाइपोंमें गीता टाइप हो रही है। गीता भगवान् का हृदय है। चित्र छपते हैं वे भी भगवान् के निमित्त ही छपाये जाते हैं। सब समय सब चीजोंमें भगवान् को देखकर ही चेष्टा करनी चाहिये-
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमन्त।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवन्त।।
भगवान् सब जगह हैं, उनके चरण, नेत्र, हाथ, मस्तक आदि सब जगह हैं, इसलिये सब जगह भगवान् को समझकर सबकी सेवा करनी चाहिये।
सब भगवान् की सन्तान हैं, सब भाई हैं सबकी सेवा करना हमारा परम कर्तव्य है।
सब हमारी आत्मा हैं आत्माकी तरह सबको समझे। भाईसे कभी वैर भी हो सकता है पर आत्मासे नहीं। सब कुछ मेरे इष्टदेवका स्वरूप है। कभी क्रोधमें आकर अपने-आपको भी मनुष्य नुकसान पहुँचा सकता है, पर अपने इष्टदेवको नहीं।
सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, समयकी अलौकिकता, प्रभुका ध्यान, बाहर-भीतरकी सफाई, सबके साथ पवित्र व्यवहार करें। काम, क्रोध, मोह, लोभको निकालें। प्रभुसे प्रार्थना करें-हे नाथ! आपमें हमारा प्रेम हो। एकान्तमें दिल खोलकर गद्गद वाणीसे करुणभावसे प्रभुसे प्रार्थना करें। भगवान् बड़े प्रेमी हैं, दयालु हैं, जो यह समझ लेता है उसका उद्धार होनेमें क्या देर है। यह भक्तिमार्ग बड़ा सुगम है।
राजविद्या राजगुह्य पवित्रमिदमुत्तमम्।
प्रत्यक्षावगमं धम्य सुसुखं कर्तुमव्ययम्॥
(गीता ९। २)
यह विज्ञानसहित ज्ञान सब विद्याओंका राजा, सब गोपनीयोंका राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त साधन करनेमें बड़ा सुगम और अविनाशी है।
प्रत्यक्ष फल है। भोजनसे तुरन्त तृतिकी तरह है। आठ विशेषण देकर भगवान् ने यह बात कही है। मृत्यु किसीको पहले नोटिस नहीं देती है। जबतक मृत्यु दूर है, शरीर आरोग्य है, तबतक हमें अपने उद्धारके लिये प्रयत्न कर लेना चाहिये। वही हमारा मित्र है, वही स्त्री है, वही बन्धु है जो हमको भगवान् की तरफ लगाये, अन्यथा सब मतलबके हैं। गृहस्थमें रहते हुए हमें भगवान् की ओर लगना है। शास्त्रकी मर्यादाके अनुसार काम करना चाहिये।
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
(गीता १६।२३)
जो पुरुष शास्त्रविधिको त्यागकर अपनी इच्छासे मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धिको प्राप्त होता है, न परमगतिकी और न सुखको ही।
इन सब बातोंको सोचकर हमारे जीवनका एक-एक मिनट अमूल्य समझकर प्रभुके भजन-ध्यानमें बिताना चाहिये, अन्यथा महान् हानि है। महापुरुष कहते हैं कि यदि तुम चेतोगे तो ठीक है अन्यथा महान् हानि है-
जो न तर भवसागर नर समाज अस पाइ।
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ।।
काल करता आजकर आज करता अब।
पलमें परलै होयगी बहुरि करेगो कब।।
आज कालकी पौंच दिन जंगल होगा बास।
ऊपर-ऊपर हल फिरे ढोर चरेंगे घास।।
कबिरा नौबत आपनी दिन दस लेहु बजाइ।
यह पुर पट्टन यह गली बहुरि न देखउ आइ।।
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- सत्संग की अमूल्य बातें