सामाजिक >> होशियारी खटक रही है होशियारी खटक रही हैसुभाष चंद्र कुशवाहा
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गाँव की जिन्दगी के तीनों पक्ष सुभाष की इन कहानियों में हैं - जिन्दगी की प्रकृति, उनकी संस्कृति और उनके भीतर मौजूद विकृति।
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