श्रंगार - प्रेम >> नाव न बाँधो ऐसी ठौर नाव न बाँधो ऐसी ठौरदिनेश पाठक
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दोनों की आँखों ने एक-दूसरे का स्पर्श किया। दीपांकर के भीतर एक अजीब-सी बयार बही...उस बयार में एक अनुगूँज भी उभरी...तो क्या शाल्मली के मन में आज भी, अब भी उनके लिए जगह है ?
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