अतिरिक्त >> सुनहरी भोर का सपना सुनहरी भोर का सपनाभगवतीलाल व्यास
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पोकरण पीछे छूट गया था। बस जैसलमेर की तरफ बढ़ रही थी। सुबह का समय था। हवा में ठंडक थी। कई बरसों बाद इस बरस पानी बरसा था। हवा में ठंडक इसी कारण थी। जब पानी नहीं बरसता तो धोरों वाली यह धरती सुबह से ही आग उगलने लगती है।
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