जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
फेरफार
कोई यह न माने कि नाच आदि के मेरे प्रयोग उस समय की मेरी स्वच्छन्दता के सूचकहैं। पाठको ने देखा होगा कि उनमे कुछ समझदारी थी। मोह के इस समय में भी मैं एक हद तक सावधान था। पाई-पाई का हिसाब रखता था। खर्च का अंदाज रखताथा। मैंने हर महीने पन्द्रह पौण्ड से अधिक खर्च न करने का निश्चिय किया था। मोटर में आने-जाने का अथवा डाक का खर्च भी हमेशा लिखता था। और सोने सेपहले हमेशा अपनी रोकड़ मिला लेता था। यह आदत अंत तक बनी रही। और मैं जानताहूँ कि इससे सार्वजनिक जीवन में मेरे हाथो लाखों रुपयों का जो उलट-फेर हुआहैं, उसमें मैं उचित किफायतशारी से काम ले सका हूँ। और आगे मेरी देख-रेखमें जितने भी आन्दोलन चले, उनमे मैंने कभी कर्ज नहीं किया, बल्कि हर एकमें कुछ न कुछ बचत ही रही। यदि हरएक नवयुवक उसे मिलने वाले थोड़े रुपयोंका भी हिसाब खबरदारी के साथ रखेगा, तो उसका लाभ वह भी उसी तरह अनुभवकरेगा, जिस तरह भविष्य में मैंने और जनता ने किया।
अपनी रहन-सहन पर मेरा कुछ अंकुश था, इस कारण मैं देख सका कि मुझे कितना खर्च करनाचाहिये। अब मैंने खर्च आधा कर डालने का निश्चय किया। हिसाब जाँचने से पता चला कि गाडी-भाड़े का मेरा खर्च काफी होता था। फिर कुटुम्ब में रहने से हरहफ्ते कुछ खर्च तो होता ही था। किसी दिन कुटुम्ब के लोगों को बाहर भोजन केलिए ले जाने का शिष्टाचार बरतना जरुरी था। कभी उनके साथ दावत में जानापड़ता, तो गाड़ी-भाड़े का खर्च लग ही जाता था। कोई लड़की साथ हो तो उसका खर्च चुकाना जरुरी हो जाता था। जब बाहर जाता, तो खाने के लिए घर न पहुँचपाता। वहाँ तो पैसे पहले से ही चुकाये रहते और बाहर खाने के पैसा और चुकाने पड़ते। मैंने देखा कि इस तरह के खर्चों से बचा जा सकता हैं। महजशरम की वजह से होने वाले खर्चों से बचने की बात भी समझ में आयी।
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