जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
मेरे पासचार सिफारशी पत्र थे: डॉक्टर प्राणजीवन महेता के नाम, दलपतराम शुक्ल के नाम, प्रिंस रणजीतसिंह के नाम और दादाभाई नौरोजी का नाम। मैंनेसाउदेम्प्टन से डॉक्टर महेता को एक तार भेजा था। जहाज में किसी ने सलाह दी थी कि विक्टोरिया होटल में ठहरना चाहियें। इस कारण मजमुदार और मैं उस होटलमें पहुँचे। मैं अपनी सफेद पोशाक की शरम से गड़ा जा रहा था। तिस पर होटलमें पहुँचने पर पता चला कि अगले दिन रविवार होने से ग्रिण्डले के यहाँ सेसामान नहीं आयेगा। इससे मैं परेशान हुआ।
सात-आठ बजे डॉक्टर महेता आये। उन्होंने प्रेमभरा विनोद किया। मैंने अनजाने रेशमी रोओंवाली उनकीटोपी देखने के ख्याल से उठायी और उसपर उलटा हाथ फेरा। इससे टोपी के रोएं खड़े हो गये। डॉक्टर महेता ने देखा, मुझे तुरन्त ही रोका। पर अपराध तो होचुका था। उनके रोकने का नतीजा तो यही निकल सकता था कि दुबारा वैसा अपराध न हो।
समझियें कि यही से यूरोप के रीति-रिवाजों के सम्बन्ध में मेरी शिक्षा का श्रीगणेश हुआ। डॉक्टर महेता हँसते-हँसेते बहुत-सी बातेसमझाते जाते थे। किसी की चीज छूनी चाहियें, किसी से जान-पहचान होने पर जोप्रश्न हिन्दुस्तान में यो ही पूछे जा सकते हैं, वे यहाँ नहीं पूछे जासकते, बाते करते समय ऊँची आवाज से नहीं बोल सकते, हिन्दुस्तान मेंअंग्रेजो से बात करते समय 'सर' कहने का जो रिवाज हैं, वह यहाँ अनावश्यकहैं, 'सर' तो नौकर अपने मालिक से अथवा बड़े अफसर से कहता हैं। फिरउन्होंने होटल में रहने के खर्च की भी चर्चा की और सुझाया कि किसी निजीकुटुम्ब में रहने की जरुरत पड़ेगी। इस विषय में अधिक विचार सोमवार परछोड़ा गया। कई सलाहें देकर डॉक्टर महेता बिदा हुए।
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