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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....

जाति से बाहर


माताजी की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर और पत्नी की गोद में कुछ महीनों का बालक छोड़करमैं उमंगों के साथ बम्बई पहुँचा। पहुँच तो गया, पर वहाँ मित्रो ने भाई कोबताया कि जून-जूलाई में हिन्द महासागर में तूफान आते हैं और मेरी यह पहलीही समुद्री यात्रा हैं, इसलिए मुझे दीवाली के बाद यानी नवम्बर में रवानाकरना चाहिये। और किसी ने तूफान में किसी अगनबोट के डूब जाने की बात भीकही। इससे बड़े भाई घबराये। उन्होंने ऐसा खतरा उठाकर मुझे तुरन्त भेजने सेइनकार किया और मुझको बम्बई में अपने मित्र के घर छोडकर खुद वापस नौकरी परहाजिर होने के लिए राजकोट चले गये। वे एक बहनोई के पास पैसे छोड़ गये औरकुछ मित्रों से मेरी मदद करने की सिफारिश करते गयो।

बम्बई में मेरे लिए दिन काटना मुश्किल हो गया। मुझे विलायत के सपने आते हीरहते थे।

इस बीच जाति में खलबली मची। जाति की सभा बुलायी गयी। अभी तक कोई मोढ़ बनियाविलायत नहीं गया था। और मैं जा रहा हूँ, इसलिए मुझसे जवाब तलब किया जानाचाहिये। मुझे पंचायत में हाजिर रहने का हुक्म मिला। मैं गया। मैं नहींजानता कि मुझ में अचानक हिम्मत कहाँ से आ गयी। हाजिर रहने में मुझे न तोसंकोच हुआ, न डर लगा। जाति के सरपंच के साथ दूर का रिश्ता भी था। पिताजीके साथ उनका संबंध अच्छा था। उन्होंने मुझसे कहा: 'जाति का ख्याल हैं कितूने विलायत जाने का जो विचार किया हैं वह ठीक नहीं हैं। हमारे धर्म मेंसमुद्र पार करने की मनाही हैं, तिस पर यह भी सुना जाता है कि वहाँ पर धर्म की रक्षा नहीं हो पाती। वहाँ साहब लोगों के साथ खाना-पीना पड़ता हैं।'

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