लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


जोशीजी ने (मावजी दवे को हम इसी नाम से पुकारते थे)मेरी तरफ देखकर मुझसे ऐसे लहजे में पूछा, मानो उनकी सलाह के स्वीकृत होने में उन्हें कोई संका ही न हो।

'क्यों, तुझे विलायत जाना अच्छा लगेगा या यही पढ़ते रहना? ' मुझे जो भाता था वहीं वैद्य में बता दिया। मैंकॉलेज की कठिनाईयों से डर तो गया ही था। मैंनें कहा, 'मुझे विलायत भेजे, तो बहुत ही अच्छा हैं। मुझे नहीं लगता कि मैं कॉलेज में जल्दी-जल्दी पासहो सकूँगा। पर क्या मुझे डॉक्टरी सीखने के लिए नहीं भेजा जा सकता?'

मेरे भाई बीच में बोले : 'पिताजी को यह पसन्द न था। तेरी चर्चा निकलने पर वेयहीं कहते कि हम वैष्णव होकर हाड़-माँस की चीर-फाड़ का का न करे। पिताजी तो मुझे वकील ही बनाना चाहते थे।'

जोशीजी ने समर्थन किया : 'मुझे गाँधीजी की तरह डॉक्टरी पेशे से अरुचि नहीं हैं। हमारे शास्त्र इस धंधे कीनिन्दा नहीं करते। पर डॉक्टर बनकर तू दीवान नहीं बन सकेगा। मैं तो तेरे लिए दीवान-पद अथवा उससे भी अधिक चाहता हूँ। तभी तुम्हारे बड़े परिवार कानिर्वाह हो सकेगा। जमाना बदलता जा रहा हैं और मुश्किल होता जाता हैं। इसलिए बारिस्टर बनने में ही बुद्धिमानी हैं।' माता जी की ओर मुड़करउन्होंने कहा : 'आज तो मैं जाता हूँ। मेरी बात पर विचार करके देखिये। जब मैं लौटूँगा तो तैयारी के समाचार सुनने की आशा रखूँगा। कोई कठिनाई हो तोमुझसे कहिये।'

जोशीजी गये और मैं हवाई किले बनाने लगा।

बड़े भाई सोच में पड़ गये। पैसा कहाँ से आयेगा? और मेरे जैसे नौजवान कोइतनी दूर कैसे भेजा जाये !

माताजी को कुछ सूझ न पड़ा। वियोग की बात उन्हें जँची ही नहीं। पर पहले तोउन्होंने यही कहा : 'हमारे परिवार में अब बुजुर्ग तो चाचाजी ही रहे हैं। इसलिए पहले उनकी सलाह लेनी चाहिये। वे आज्ञा दे तो फिर हमें सोचना होगा।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book