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गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...

Godan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रेमचन्द हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार हैं और उनकी अनेक रचनाओं की गणना कालजयी साहित्य के अन्तर्गत की जाती है। ‘गोदान’ तो उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है ही, ‘गबन’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘सेवा सदन’ तथा अनेकों कहानियाँ हिन्दी साहित्य का अमर अंग बन गई हैं। इनके अनुवाद भी भारत की सभी प्रमुख तथा अनेक विदेशी भाषाओं में हुए हैं। इन रचनाओं में उन्होंने जो समस्याएँ उठाईं तथा स्त्री-पुरूषों के चरित्र खींचे, वे आज भी उसी प्रकार सार्थक हैं जैसे वे अपने समय थे और भविष्य में बने रहेंगे। भारतीय समाज के सभी वर्गों का चित्रण बहुत मार्मिक है विशेषकर ग्रामीण किसानों का, जिनके साथ वे एक प्रकार से आत्मसात ही हो गये थे।

‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।


होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा-गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूं। जरा मेरी लाठी दे दो।

धनिया के हाथ गोबर से भरे थे। उपले थापकर आयी थी। बोली-अरे, कुछ-रस पानी तो कर लो। जल्दी क्या है ?

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