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गीता प्रेस, गोरखपुर >> तू-ही-तू

तू-ही-तू

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1118
आईएसबीएन :00000

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जब तक हम परमात्मा को सर्वत्र व्याप्त नहीं पाते तब तक सारे संशय और मायाजाल हमें घेरे रहते हैं। जब हम परमात्मा को सही जान जाते हैं, तो सर्वत्र और सर्वदा उसी के दर्शन होते हैं।

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